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धर्म एवं दर्शन >> मरणोत्तर जीवन

मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587

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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


दूसरे को यह पता लग चुका है कि शरीर को छोड्कर जाने वाला ही 'यथार्थ मनुष्य' है और जब शरीर से वह अलग हो जाता है, तब उसने शरीर में रहते समय जो आनन्द कभी नहीं पाया था उससे अधिक आनन्द का उपभोग वह करता है। अत: वे उस सड़ते हुए मुरदे को जलाकर नष्ट कर देने की शीघ्रता करने लगे। यहाँ हमें उस मूल का पता लगता है, जिससे आत्मा की सच्ची कल्पना का उद्गम हुआ। यही स्थान है, जहाँ कि शरीर नहीं वरन् आत्मा ही यथार्थ मनुष्य है, इसका पता चला, यही स्थान है, जहाँ की यथार्थ मनुष्य और उसके शरीर के अटूट सम्बन्ध होने के समस्त विचारों का अभाव है, इसीलिए यहाँ पर आत्मा की स्वाधीनता के उदार विचार का उदय हो सका। और जब आर्यों ने दिवंगत आत्मा जिस शरीररूपी चमकीले वस्त्र के भीतर लपेटी रहती है उसको भेदकर भीतर देखा, तब उन्हें उस आत्मा का यथार्थ स्वरूप, एकाकी, निराकार, विशिष्ट तत्त्व होने का पता चला और तभी यह अनिवार्य प्रश्न उठा कि वह कहाँ से आयी?

भारतवर्ष में और आर्यों में ही पूर्वजन्म, अमरत्व और आत्मा के व्यक्तित्व का सिद्धान्त प्रथमतः प्रकट हुआ। इजिप्त देश के आधुनिक संशोधनों में इस पृथ्वी पर के जीवनकाल के पूर्व और पश्चात् रहनेवाली स्वतन्त्र व्यक्तिमान आत्मा के सिद्धान्तों का नामनिशान नहीं पाया जाता। किसी-किसी रहस्यग्रन्थ में यह विचार है पर उनमें उसका सूत्र भारतवर्ष से ही सम्बन्ध रखता पाया गया है।

कार्ल हेकेल कहते हैं - ''मुझे निश्चय हो चुका कि जितनी अधिक गम्भीरता से हम इजिप्तवालों के धर्म का अध्ययन करते हैं, उतना ही अधिक स्पष्ट हमें यह दिखता है कि सर्वसाधारण इजिप्शियन धर्म के लिए आत्मा की देहान्तर-प्राप्ति (Metempsyechosis) का सिद्धान्त बिलकुल परायी वस्तु थी और जिस किसी भी रहस्य ग्रन्थ में वह बात है. वह ओसाइरिस (Osiris) उपदेशों के अन्तर्गत नहीं है, वह हिन्दू ग्रन्थ से प्राप्त किया है।''

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