लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> मरणोत्तर जीवन

मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


चारों ओर की परिस्थिति और अनावश्यक व्योरों की एकांगी, छिछली और पूर्वग्रहदूषित धारणा करके कभी-कभी अनेक सम्प्रदायों और पन्थों के अनिश्चित मतों से ऊबकर और - दुःख की बात है कि बहुधा संगठित पुरोहित दल के घोर अन्धविश्वासों के फलस्वरूप अत्यन्त विपरीत दिशा में पहुँच जाने के कारण - पुराने जमाने में या आजकल विशेषकर प्रौढ़ बुद्धिवाले अनेक मनुष्यों ने सत्य की शोध को निराश होकर छोड़ ही नहीं दिया, वरन् उसे निष्फल और निरुपयोगी भी घोषित कर दिया। भले ही दार्शनिक लोग कुद्ध हों और नाक-भौं सिकोड़े और पुरोहित लोग अपना रोजगार तलवार के बल पर ही क्यों न जारी रखें, परन्तु सत्य तो उन्हीं को प्राप्त होता है जो निर्भय होकर बिना दूकानदारी किये उसके मन्दिर में जाकर केवल उसी के हेतु उसकी पूजा करते हैं। प्रकाश उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त होता है जो अपनी बुद्धि द्वारा सचेष्ट होकर प्रयत्न करते हैं, यद्यपि वह धीरे से सम्पूर्ण राष्ट्र के पास बिना जाने पहुँच जाता है। दार्शनिक तत्त्ववेत्तागण महामना पुरुषों द्वारा सत्य की खोज के लिए इच्छापूर्वक किये हुए विशेष प्रयत्नों के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, और इतिहास यह बताता है कि वही सत्य किस प्रकार धीरे धीरे चुपके से सारी जनता में प्रविष्ट हो गया।

मनुष्यों ने अपने सम्बन्ध में जितने सिद्धान्त निकाले हैं, उन सब में से सर्वाधिक प्रचलित, शरीर से भिन्न अस्तित्ववाले अमर आत्मा का ही है। और ऐसे आत्मा को माननेवालों में से अधिकांश विचारवान लोग सदा उसके पूर्वास्तित्व में भी विश्वास करते आये हैं।

वर्तमान समय में संगठित धर्मवाले अधिकांश मनुष्य यही विश्वास रखते हैं और सुसम्पन्न देशों के अत्युत्तम विचारशील पुरुष, यद्यपि वे आत्मा के पूर्व-अस्तित्व के विरोधी धर्म में पले हैं, तथापि वे उस विश्वास का समर्थन करते हैं। यह विश्वास हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म का आधार है, पुराने मिस्रदेशनिवासी विद्वान् लोग इसे मानते थे, पुराने ईरानी लोगों ने भी इस विश्वास को ग्रहण किया, यूनानी तत्ववेत्ताओं ने इसे अपने दर्शनशास्र की नीव बनायी, हिंदुओं में से फैरिसी लोगों ने इसे स्वीकार किया, मुसलमानों में से प्राय: सभी सूफियों ने इसकी सत्यता को मान लिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book