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धर्म एवं दर्शन >> मरणोत्तर जीवन

मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587

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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


अपने इसी विचार के कारण इजिप्तनिवासी अपने यहाँ के मुरदों की रक्षा करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। पहले तो उन्होंने मुरदों को गाड़ने के लिए मरुस्थल को पसन्द किया था, क्योंकि वहाँ की सूखी हवा में शरीर का नाश शीघ्र नहीं होता था और इसी कारण गयी हुई आत्मा को दीर्घ जीवन प्राप्त हो जाता था।

कुछ काल के उपरान्त उनके यहाँ के एक देवता ने मुरदे को ज्यों का त्यों बनाये रखने की विद्या (Mummyfication) का आविष्कार किया। इस विद्या द्वारा श्रद्धावान लोग अपने पूर्वजों के मृतशरीरों को प्राय: अनन्तकाल तक रख सकने की आशा करने लगे, जिससे कि मृत आत्मा (या प्रेतात्मा), वह चाहे जितनी भी दुःखी क्यों न हो, अमरत्व प्राप्त कर सके।

जिस संसार में आत्मा अब आगे कोई आनन्द नहीं प्राप्त कर सकती, उस संसार के लिए सदैव शोक करते रहने से मृत पुरुष के दुःख और पीड़ा का कोई अन्त नहीं रहता था। मृत पुरुष चिल्ला उठता, ''अरे मेरे भैया! खान-पान, नशा कुछ भी मत छोड़ो, प्रेम और सुखोपभोग से भी अलग मत होओ, चाहे रात हो या दिन, अपनी वासनाओं की तृप्ति से विरत मत होओ, अपने हृदय में दुःख मत लाओ - क्योंकि मनुष्य को पृथ्वी पर रहना ही कितने वर्ष है!

'पश्चिम' तो घोर निद्रा और गहरी छाया का स्थान है, जहां के निवास करने वाले एक बार स्थापित कर दिये जाने पर अपने 'ममी' (Mummy ) रूप में सदा सुप्त रहते हैं और अपने भाइयों को देखने के लिए कभी जाग्रत नहीं हो सकते, वे अपने माता-पिता को अब आगे कभी नहीं पहचानते और अपनी स्त्रियों और बच्चों को भी अन्तःकरण से भूल जाते हैं। वह सजीव जल, जिसे पृथ्वी अपने ऊपर बसनेवाले सभी को देती है, वह जल भी मेरे लिए दूषित और प्राणहीन बन जाता है, वह जल पृथ्वी पर रहनेवालों के लिए तो बहता हुआ है, पर मेरे लिए तो वह जल, जो मेरा है, केवल सड़ा हुआ द्रव मात्र है, जब से मैं इस श्मशानघाटी में आया हूँ, मैं कहाँ हूँ और क्या हूँ, यही नहीं जान पाता। मुझे बहता पानी पीने को दो, मुझे जल के किनारे मेरा मुँह उत्तर की ओर करके रख दो जिससे कि मुझे शीतल वायु का स्पर्श-सुख प्राप्त हो और मेरा हृदय अपने दुःख से छूटकर प्रफुल्ल हो उठे।'' ये मूल पंक्तियां ब्रगश (Brugsch) द्वारा जर्मन भाषा में अनुवादित की गयी हैं। डाय् इजिप्टिश ग्रेबरवेल्ट (Die Egyptische Graberwelt) पृष्ठ 39-40, इसी प्रकार उनका अनुवाद फ्रान्सीसी भाषा में क्रूसे द्वारा किया गया है, एट्यूड्स इजिप्टिएन्निज (Etudes Egyptiennes ) भाग 1, पृष्ठ 181-190

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