व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय मेरा जीवन तथा ध्येयस्वामी विवेकानन्द
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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान
हम मनुष्य हैं। भगवान ने हमें विचारशक्ति इसलिए दी है कि हम उसका यथायोग्य उपयोग करें, इसलिए नहीं कि जिस प्रकार पशुओं को चाहे जो कोई हाँक ले जाता है, उसी प्रकार कोई भी आकर जोरशोर के साथ कुछ कहने लगे और हम चुपचाप उसके पीछे हो लें। इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि हमें अपने अतीत एवं वर्तमान काल के सभी तथ्यों और जानकारियो का संग्रह करना चाहिए, उन पर अच्छी तरह विचार करना चाहिए और उन्हीं के आधार पर भविष्य की योजना बनानी चाहिए। हमें केवल भावनाओं के द्वारा परिचालित नहीं होना चाहिए।
सर्वप्रथम सबसे आवश्यक बात है चरित्र। चरित्र के सिवा कोई भी महान् कार्य साध्य नहीं होगा। महात्माजी की ओर देखो। अपने चरित्र के बल पर उन्होंने सारे राष्ट्रों को किस प्रकार अपने हाथ में ले लिया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया। इसके लिए उन्होंने तोपें, एटम बम्ब आदि का उपयोग नहीं किया। अतएव यदि हममें भारत को महान् बनाने की इच्छा हो तो हमें सर्वप्रथम अपना चरित्र निर्माण करना होगा। फिर अपनी विचारशक्ति का उपयोग कर हमें भारत को किस प्रकार गढ़ना है इसका योग्य अध्ययन करने के बाद ही कार्य आरंभ करना चाहिए। फिर यदि उस प्रयत्न में हमें प्राणों का भी बलिदान करना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। इस प्रकार के अध्ययन के लिए स्वामी विवेकानन्द का साहित्य हमारे लिए अत्यंत मार्गदर्शक सिद्ध होगा। वह हमें भारतीय संस्कृति एवं भारतीय आदर्शों की महानता का परिचय करा देगा।
स्वामी विवेकानन्द के साहित्य से संकलित यह पुस्तक, भारत की वर्तमान अवनति के कारण, उसकी वर्तमान परिस्थित एवं उसके पुनरुज्जीवन के उपाय के संबंध में स्वामीजी के विचारों का दिग्दर्शन करा देगी।
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