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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय

मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588

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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान


सर्वप्रथम तो हमें उस चिह्न - ईर्ष्यारूपी कलंक को धो डालना चाहिए। किसी से ईर्ष्या मत करो। भलाई के काम करनेवाले प्रत्येक को अपने हाथ का सहारा दो। तीनों लोकों को जीवमात्र के लिए शुभ कामना करो। विशाल बनना, उदार बनना, क्रमश: सार्वभौम भाव में उपनीत होना यही हमारा लक्ष्य है। अन्य किसी बात की आवश्यकता नहीं, 'आवश्यकता है केवल प्रेम, निश्छलता और धैर्य की।'

इस समय चाहिए प्रबल कर्मयोग, हृदय में अमित साहस, अपरिमित शक्ति।

यदि तुम मेरी बात सुनो, तो तुम्हें अब पहले अपनी कोठरी का दरवाजा खुला रखना होगा। तुम्हारे घर के पास बस्ती के पास कितने अभावग्रस्त लोग रहते हैं, उनकी तुम्हें यथार्थ सेवा करनी होगी। जो पीड़ित है उसके लिए औषधि और पथ्य का प्रबंध करो और शरीर के द्वारा उसकी सेवा- शुश्रुषा करो। जो भूखा है उसके लिए खाने का प्रबंध करो। तुमने तो इतना पढ़ा-लिखा है, अत: जो अज्ञानी है, उसे वाणी द्वारा जहाँ तक हो सके समझाओ। लाखों स्त्री-पुरुष पवित्रता के अग्निमंत्र से दीक्षित होकर, भगवान के प्रति अटल विश्वास से शक्तिमान बनकर और गरीबों, पतितों तथा पददलितों के प्रति सहानुभूति से सिंह के समान साहसी बनकर इस संपूर्ण भारत देश के एक छोर से दूसरे छोर तक सर्वत्र उद्धार के संदेश, सेवा के संदेश, सामाजिक उत्थान के संदेश और समानता के संदेश का प्रचार करते हुए विचरण करेंगे।

भारत तभी जगेगा जब विशाल हृदयवाले सैकड़ों स्त्री-पुरुष भोग- विलास और सुख की सभी इच्छाओं को विसर्जित कर मन, वचन और शरीर से उन करोड़ों भारतीयों के कल्याण के लिए सचेष्ट होंगे जो दरिद्रता तथा मूर्खता के अगाध सागर में निरंतर नीचे डूबते जा रहे हैं।

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