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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


110. आज समाज में औरत को


आज समाज में औरत को
समझते हैं वासना का जरिया
जहाँ मिले पकड़ लेते हैं
कर देते हैं इज्जत घटिया।

नारी को फूल तुम समझो
मत कुचलो यूँ अपने हाथों

आज ये तुम्हें बताती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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