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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


81. भटक रास्ता मारी-मारी


भटक रास्ता मारी-मारी
फिर रही मैं बेचारी
पैर फिसला, गिर गई नहर में
सर्दी उस दिन थी भारी

काँटे चुभने लगे तन में
जीने की इच्छा थी मन में

पानी में तैरती डूबती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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