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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


87. एक दिन बस यूँ ही


एक दिन बस यूँ ही
मैं और मेरे पोते की मम्मी
जिद्द करने लगे साथ जाने की
और खेत में काम करने की

मेहनत करते हैं वो दोनों
ठंडी छाँव में बैठ हम दोनों

छाया में बैठ पोते को खिलाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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