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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


89. फिर दोनों दौड़कर आते हैं


फिर दोनों दौड़कर आते हैं
मन में वो घबराते हैं
पता नही क्या हुआ होगा
प्रश्नवाचक मुद्रा में आते हैं

पूछते हैं मुझको क्या हुआ
एक बार कहो तो प्रिये माँ

तब उनको हांडी मैं दिखलाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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