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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


91. तब बेटे को कहती हूँ


तब बेटे को कहती हूँ
अब बेटे तुम धर्म करो
चारों तरफ के सभी गाँवों में
अब तुम सबको न्यौता दो।

मन से अब खर्चा करो बेटा
भाग्यवान है ये अपना बेटा।

मैं बेटे को समझाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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