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कविता संग्रह >> नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


93. मेरे वो चारों बेटे


मेरे वो चारों बेटे
जिन्हें भूल चुकी थी मैं
वो भी दयनीय दशा में
फटे कपड़ों में खाने आये

मेरी पत्थर आँखें भी
एक बार फिर चमक उठी

मैं ममता की मारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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