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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


अतः अमरावती में देवताओं की सभा हुई और उसमें लंका पर दशग्रीव के अधिकार हो जाने और उसके देवलोक में आकर यहाँ की स्त्रियों पर बलात्कार का विषय उपस्थित हुआ।

इस सभा में कुबेर ने दशग्रीव के लंका पर आधिकार जमाने से लेकर तत्काल तक का पूर्ण वृत्तान्त बता दिया। उसने लंका में बसे हुए देवताओं के साथ दुर्व्यवहार तथा उनकी स्त्रियों से वेश्यावृत्ति कराने की कथा भी सुनायी।

इस पर इन्द्र ने स्पष्ट कह दिया, ‘‘अन्य देशों में इस प्रकार के व्यभिचार के उदाहरण मिलते रहते हैं। इसके लिये हम देवलोक को युद्ध में नहीं घसीट सकते।’’

इस पर कुबेर ने रम्भा अप्सरा पर बलात्कार का वृत्तान्त बता दिया।

‘‘परन्तु क्या वह आपके राज्य में सेना लेकर आया था?’’ इन्द्र ने पूछा।

‘‘नहीं। वह अपने विमान में अकेला आया था।’’

‘‘आपके पास भी तो विमान था। आपने उसका पीछा क्यों नहीं किया? मुझे यह सूचना मिली है कि रम्भा जब उसके साथ कुंज में गयी तो उसकी सखियाँ वहाँ उसे देख रही थीं। वे देख रही थीं कि दशग्रीव रम्भा को किस काम के लिए ले जा रहा है और रम्भा ने हो-हल्ला नहीं किया। वह उसके साथ चली गयी।

‘‘उसकी सखियों ने यह समझा था कि रम्भा स्वेच्छा से दशग्रीव के साथ गयी है। उन्होंने भी नलकूबर को बताया नहीं। जब दशग्रीव उसे विमान में बैठाकर चला गया तब भी देखने वालों ने आपत्ति नहीं की। यह तो जब रम्भा लौटकर आयी तो उसकी हो रही दुर्दशा को देखकर सबको क्रोध आया, परन्तु उससे क्या हो सकता था?

‘‘उस समय भी यदि नलकूबर विमान लेकर उसका पीछा करता तो उसे लंका पहुँचने से पहले पकड़ा जा सकता था। तुम्हारे पास पुष्पक विमान था जो उससे कई गुना अधिक गति से उड़ सकता है।

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