उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
सबसे पहले अल्कापुरी पर ही आक्रमण किया गया। धनाध्यक्ष ने डटकर आक्रमण का विरोध किया, परन्तु रावण की सेना बहुत अधिक थी और लड़ने का अभ्यास रखती थी। अल्कापुरी की सेना को लड़ने का अभ्यास नहीं था। जब से धनाध्यक्ष ने राज्य स्थापित किया था तो लोग शान्ति और सुख का जीवन व्यतीत करते रहे थे।
सेना राक्षस सेना के सामने टिक नहीं सकी। धनाध्यक्ष स्वयं लड़ने के लिये आया, परन्तु घायल हो अचेत हुआ तो उसके सेवक उसे उठा कर ले गये। रावण ने पूर्ण नगर को लूटा। वहाँ के स्त्री-वर्ग को अपने सैनिकों के हवाले कर दिया और कुबेर के पुष्पक विमान को अपने अधिकार में ले लिया।
अल्कापुरी के उपरान्त कैलाश पर आक्रमण कर दिया। यह महादेव शिव का देश था। शिवजी के गण लड़ने के लिये निकल आये। घमासान युद्ध हुआ। सहस्त्रों लोग दोनों पक्ष के मारे गये। अन्त में शिवजी से रावण का युद्ध होने लगा तो दोनों में संधि हो गयी।
रावण को समझ आया कि वह शिवजी पर विजय प्राप्त नहीं कर सकेगा। इस कारण रावण ने ही सन्धि का प्रस्ताव किया।
शिवजी ने भी समझा कि और अधिक रक्तपात की क्या आवश्यकता सारे देवताओं पर रोष था कि वह उसकी रक्षा के लिये नहीं आयें।
इस प्रकार बारी-बारी से भिन्न-भिन्न देव-राज्यों को ध्वस्त करता हुआ यम, वरुण और अन्य देवताओं पर विजय प्राप्त कर उसने अमरावती पर धावा बोल दिया।
इन्द्र किसी अन्य देवता की सहायता के लिये नहीं निकला था और अन्य कोई देवता भी इन्द्र की रक्षा के लिये नहीं आया। इस पर भी अति भयंकर संग्राम हुआ। रावण पराजित होने वाला था कि मेघनाथ ने मायावी युद्ध कर इन्द्र को बन्दी बना लिया।
इन्द्र के बन्दी बना लेने पर जहाँ राक्षसों के नेता नाच-नाच कर परस्पर गले मिलने लगे, वहाँ देवताओं में मुर्दनी छा गयी। रावण अमरावती को जला कर भस्म कर देने वाला था कि ब्रह्मा समाचार पाकर वहाँ चले आये और रावण तथा इन्द्र में सन्धि करवा दी। परम्स्पर मैत्री रखने के वचन हो गये और इन्द्र ने अपनी मुक्ति के मूल्य में एक दिव्य शक्ति भी मेघनाथ को दी।
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