उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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एक दिन कुलवन्तसिंह उद्विग्न मन घर पर आया। महिमा यद्यपि गर्भवती हो चुकी थी और कुछ अस्वस्थ रहने के कारण स्कूल का कार्य भली-भाँति नहीं कर पाती थी, इस पर भी वह नियम से स्कूल जाती थी और वहाँ पढ़ाई भी कराती थी।
सुन्दरी और पण्डित सुरेश्वर बिलासपुर को लौट गये थे। करोलबाग वाले मकान में पूर्ववत् महिमा उसकी बहन गरिमा और उसके दोनों बच्चे रहते थे।
इस दिन कुलवन्त आया तो उसका मुख उतरा हुआ था। यह बात युद्ध-समाप्ति के पाँच मास उपरान्त की थी। ताशकन्द समझौता और भारत के प्रधान मन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री का देहान्त हो चुका था। पति को उदास और पीत मुख देख गरिमा ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है जी! बहुत उदास प्रतीत होते हैं?’’
‘‘हाँ! मैंने विशेष यत्न किया था, अमृत के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये। अपने एयर कमाण्डर के एक गहरे मित्र यार मुहम्मद पाकिस्तानी वायु-सेना के कमाण्डर हैं। मैंने उसको अमृत की पूर्ण दुर्घटना बतायी तो उन्होंने अमृत का पता कर देने के लिये अपने मित्र को लिखा था। उसने जाँच करायी होती है और कमाण्डर यार मुहम्मद का पत्र आया है। उसने लिखा है कि लायलपुर राडार पर आक्रमण के दिन एक हिन्दूस्तानी जहाज भूमि पर से की गयी गोलाबारी से निशाना बना था। वह जहाज हिन्दुस्तान की ओर भागा था। वह सूचना है कि लायलपुर से बीस-बाईस मील के अन्तर पर उस जहाज पायलट पैराशट से नीचे उतरा था, परन्तु समीप के गाँव वालों ने पकड़कर उसे तुरन्त मार डाला था।’’
‘‘तो यह पक्की खबर है?’’
‘‘हाँ। हमारा कमार्ण्डिग अफसर कहता है कि यार मुहम्मद उससे झूठ नहीं बोल सकता। उसने लिखा है कि उसके आदमी उस गाँव में गये हैं और वहाँ से अमृत की डायरी और अन्य वर्दी के चिह्न लाये हैं। इससे अमृत के विषय में तो बात पक्की ही समझनी चाहिये।’’
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