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धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग

सरल राजयोग

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :73
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9599

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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण


चतुर्थ पाठ


मन को वश में करने की शक्ति प्राप्त करने के पूर्व हमें उसका भली प्रकार अध्ययन करना चाहिए।

चंचल मन को संयत करके हमें उसे विषयों से खींच लेना होगा और उसे एक विचार में केन्द्रित करना होगा। बार-बार इस क्रिया को करना होगा। इच्छा-शक्ति द्वारा मन को वश में करना होगा तथा उसकी क्रिया को रोककर उसे ईश्वर की महिमा के चिन्तन में लगाना होगा।

मन को स्थिर करने का सबसे सरल उपाय है, चुपचाप बैठ जाना और कुछ समय के लिए वह जहाँ जाए, जाने देना। दृढ़तापूर्वक इस भाव का चिन्तन करो, ''मैं मन को भटकते हुए देखनेवाला साक्षी हूँ। मैं मन नहीं हूँ।'' तत्पश्चात् मन को ऐसा सोचता हुआ कल्पना करो कि मानो वह तुमसे बिलकुल भिन्न है। अपने को ईश्वर से एक मानो, मन अथवा जड़ पदार्थ के साथ एक करके कदापि न सोचो।

सोचो कि मन तुम्हारे सामने एक विस्तीर्ण तरंगहीन सरोवर है तथा आने-जानेवाले विचार इसकी सतह पर उठने और समा जानेवाले बुलबुले है। विचारों को रोकने का प्रयास न करो, वरन् कल्पनानेत्र से उनको देखते रहो और जैसे-जैसे वे प्रवाहित होते हैं, वैसे-वैसे तुम भी उनके पीछे चलो। यह क्रिया धीरे-धीरे मन के वृत्तों को सीमित कर देगी। कारण यह है कि मन विचार की विस्तृत परिधि में घूमता है और ये परिधियाँ विस्तीर्ण होती हुई निरन्तर बढ़नेवाले वृत्तों में फैलती रहती हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि सरोवर में ढेला फेंकने पर होता है। हमें इस प्रक्रिया को उलट देना है और बड़े वृक्षों से प्रारम्भ करके उन्हें क्रमश: छोटा बनाते जाना है ताकि अन्त में हम मन को एक बिन्दु पर स्थिर करके उसे वहीं रोक सकें।

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