लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग

सरल राजयोग

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :73
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9599

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

372 पाठक हैं

स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण


पवित्र चिन्तन हमें अपनी समस्त मानसिक मलिनताओं को भस्म करने में सहायता देता है। जो योगी नहीं है, वह दास है। मुक्ति-लाभ के लिए एक-एक करके सभी बन्धन काटने होंगे।

इस जगत् के परे जो सत्य है, उसको सभी लोग जान सकते हैं। यदि ईश्वर की सत्ता सत्य है, तो अवश्य ही हमें उसकी प्रत्यक्ष उपलब्धि होनी चाहिए और यदि आत्मा जैसी कोई सत्ता है, तो हमें उसे देखने और अनुभव करने में समर्थ होना चाहिए।

यदि आत्मा है, तो उसे जानने का एकमात्र उपाय है देहबुद्धि के परे जाना।

योगी इन्द्रियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित करते हैं : ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ, अथवा ज्ञान और कर्म।

अन्तरिन्द्रिय या अन्तःकरण के चार स्तर हैं :

प्रथम - मन अथवा मनन अथवा चिन्तन-शक्ति। इसको संयत न करने से प्राय: यह समस्त शक्ति नष्ट हो जाती हैं। उचित संयम किये जाने पर यह अद्भुत शक्ति बन जाती है।

द्वितीय - बुद्धि अथवा इच्छा-शक्ति (इसको बोध-शक्ति भी कहा जाता है)।

तृतीय - अहंकार अथवा अहंबुद्धि।

चतुर्थ - चित्त, अर्थात् वह तत्व, जिसके आधार और माध्यम से समस्त वृत्तियाँ क्रियाशील होती हैं। मानो यह मन का धरातल है अथवा वह समुद्र है, जिसमें समस्त वृत्तियाँ तरंगों का रूप धारण किये हुए हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book