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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

अंधेरे में

रात के अन्धेरे में
ये काले-काले पर्वत
प्रकृति की हरियाली को
अन्दर अपने समेटे हुए
लगते हैं बड़े डरावने से।

रात के अन्धेरे ने
पर्वतों के साथ-साथ
हरियाली को भी
प्रदान की है कालिमा
तभी तो.........
तभी तो लगते हैं
उमड़-घुमड़ कर
आने वाले काले बादल से।

अन्दर अपने समेटे हुए
लगते हैं बड़े डरावने से।

माना अजीब से ये
लगते हैं अन्धेरे में
मगर इनका भी
कोई कुछ तो वजूद है।
दिन निकलते ही
चमक उठती है इनकी आभा
अपने आपको ढाल  लेते हैं
सूर्य की किरणों से हैं
हो जाते स्वर्णिम

अपने अन्दर समेटे हुए
लगते हैं बड़े ही डरावने से।

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