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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

नाम मिटाया

आज तो जैसे हिन्दी साहित्य
खत्म होने की है कगार पर
आज हर जगह चाहे हो दफ्तर
या फिर चाहे हो घर का नौकर
हर जगह पर रहती है अंग्रेजी
आज हिन्दी में कर लिया संगम
अंग्रेजी की वर्णमाला का।

फिर राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का
औचित्य ही कहां रह गया
हिन्दी भाषा को अपने आप पर
आने लगी है पूरी तरह से ग्लानि
बहाते हैं आंसू सारा दिन
हिन्दी साहित्य व हिन्दी ग्रन्थ
संस्कृत व हिन्दी का
नामोंनिशान मिटा दिया
इस अंग्रजी भाषा ने।

तभी तो रोती है चिल्लाती है
आंखों में भरकर आंसू अपने
कवियों के पास ये जाती है
मगर आज का कविवर्ग भी
भोली भाषा हिन्दी को
बहलाते फुसलाते हैं
पोंछ कर इसके ये आंसू
अंग्रेजी भाषा का ही
अमली जामा पहनाते हैं।

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