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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

पानी और उमस

काली घटाएं
आ-आ कर
धरती का दामन
फिर से
चूमने लगी हैं।

लग कर
धरती के सीने से
इसके मन के
आन्तरिक कोनों को
झकझोर कर
मन को प्रफुल्लित
करने लगी हैं।

हर तरफ 
हरियाली का मंजर
मोर की ध्वनि से
सारा वातावरण
शोभायमान,
कोयल फिर से
कूकने लगी हैं।
 
बयार कभी शीतल
तो कभी गरम
तन भी तर
पसीने से।
तो कभी तर
बारिश की बूंदों से
कभी ठंडा तन तो
कभी पसीने
छूटने लगे हैं।

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