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कविता संग्रह >> यादें

यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



गर्मी


उफ ये गर्मी
अच्छी थी वो सर्दी
जब हम ओढे रजाई
रहते थे बैठे चारपाई
आग जला भगाते सर्दी
खाते रेवड़ी मूंगफली।

मगर आई गर्मी को
भगाएं दूर कैसे हम।
भडक़ाती है और तपन को
फ्रिज की ठंडी बर्फ
न घर में आराम है।
न बाहर किसी बगीचे में
तभी कहते हैं बात सच्ची
गर्मी से सर्दी थी अच्छी।

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