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धर्म एवं दर्शन >> श्रीकृष्ण चालीसा

श्रीकृष्ण चालीसा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9655

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श्रीकृष्ण चालीसा


विप्र सुदामा मित्र तिहारा,
अति दरिद्र होया दुखयारा।
आतुर हो आया तव द्वारे,
आपने उसके कष्ट निवारे।।23।।

अति धनाढ्य ब्राह्मण को कीन्हा,
धन उसको अतुलित प्रभु दीना।
आपने मित्र भाव अपनाया,
जग में दीनदयाल सदाया।।24।।

जय भक्तन सन्तन हितकारी,
जय त्रैलोकीनाथ बनवारी।
जय जय विश्वरूप प्रभु प्यारे,
जय जसुमतिसुत नन्द दुलारे।।25।।

जय अक्षर अव्यय अविकारी,
जय श्रुति पुज्य प्रभु पापारी।
जय विश्वपति जय हलघर भ्राता,
जय दुःख हरण सुखों के दाता।।26।।

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