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धर्म एवं दर्शन >> श्रीकृष्ण चालीसा

श्रीकृष्ण चालीसा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9655

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श्रीकृष्ण चालीसा


एक समय एक नन्दा नाई,
दुर्योधन की सभा भुलाई।
रूप उसी का आपने धारा,
सब कुछ उसका काज संवारा।।27।।

फिर उस नाई दर्शन पाया,
भक्त जान निज धाम पठाया।
जात पात ना आपको प्यारी,
भक्तन को दीनी सरदारी।।28।।

जय समदर्शी कृष्ण मुरारी,
जय जय जय भक्तन भयहारी।
जय जय द्वारकेश सुखदाई,
जय जय प्रभु जय जय प्रभुताई।।29।।

जय गोपेश गोविन्द गोपाला,
जय करुणाकर कृष्ण कृपाला।
जय सूक्ष्म जय महास्थूला,
जय जय जगत वृक्ष के मूला।।30।।

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