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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


आदिदेव भगवान शिव

देवताओं में सर्वोच्च महादेव अर्थात् महानतम आदिदेव भगवान शिव जिन्हें ऋग्वेद में रुद्र कहा गया, तो मोहनजोदड़ो में इन्हें पशुपति के नाम से जाना गया है, तो पुराणों में इन्हें महादेव कहा गया है। श्वेताश्वरोपनिषद में उल्लेख है कि सृष्टि के आदिकाल में जब हर ओर अंधकार व्याप्त था, न सत् था न असत् तब केवल निर्विकार शिव (रुद्र) ही थे।

शिवपुराण के अनुसार-

एकमेव तदारुद्रे न द्वितीयोऽस्ति कश्चन।
संसृज्य विश्वं भुवनं गोपतान्ते संचुकोचए।।
विश्व तश्चक्षुरणययमुतातं विश्ववतो मुख:।
तथैव विश्ववन्तो बाहुविश्वत: पादसंयुत:।।

अर्थात सृष्टि के प्रारम्भ में एक रुद्रदेव ही रहते हैं अन्य कोई नहीं। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अन्त भी करते हैं। उनके सभी ओर नेत्र भुजाएँ, मुख और चरण हैं। स्वर्ग और पृथ्वी को अपना करने वाले वे ही एक नहेश्वर देव हैं।

शिव कल्याणकारी हैं, यही उनके नामध्वनि का अर्थ है। शिव, मनुष्य, देवता, सुर, असुर, राक्षस, दैत्य और दानव सभी के पूज्य हैं। पद्म पुराण में भगवान राम को शत्रुघ्न से कहते बताया गया है कि मैं शिव के चरणों की धूलि धारण करता हूँ। रामायण के सभी पात्रों के पूज्य शिव हैं। लंकाविजय के पहले भगवान राम शिव की पूजा-अर्चना करते हैं और शिव का आशीर्वाद लेते हैं। हर युग में शिव के पूजन की बात आती है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण ने कहा है कि-

महादेव महादेव महादेवेति वादिनः।
पश्चाद्याभि भयत्रस्तो नाम श्रवण लोभतः।।

अर्थात् भगवान शिव का नाम लेने वाले के पीछे नाम सुनने की लालच में चलता हूँ। यजुर्वेद में शिवपूजन दृढ़ मंत्र है तो शिवपुराण में ब्रह्मा से लेकर विश्व के सभी चराचर प्राणियों को भगवान शिव का पशु कहा गया है। शिव का अर्थ है कल्याणकारी तो शंकर में शं अर्थात् कल्याण, कर अर्थात कर्त्ता। इसी प्रकार रुद्र में रु' अर्थात दुःख, द्र अर्थात् द्रवित करने वाला, समाप्त करने वाला होता है। हर मानव में शिव का निवास है।

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