| धर्म एवं दर्शन >> बृहस्पतिवार व्रत कथा बृहस्पतिवार व्रत कथागोपाल शुक्ल
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बृहस्पतिवार के हेतु रखे गये व्रतों की कथा
 राजा को यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई। समय आने पर उसके एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। अब राजा बोला, “हे रानी ! स्त्री बिना भोजन के रह सकती है, बना कहे नहीं रह सकती। जब मेरी बहन आवे तुम उससे कुछ कहना मत।” रानी ने सुनकर हाँ कह दिया।
 
 जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर भाई के यहाँ आई। तभी रानी ने कहा, “घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई, गधा चढ़कर आई।”
 
 राजा की बहन बोली, “भाभी मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हे औलाद कैसे मिलती।” बृहस्पतिदेव ऐसे ही हैं। जैसी जिसके मन में कामनाएं हैं वे सभी को पूर्ण करते हैं। जो सद्भावनापूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता अथवा सुनता है और दूसरों को सुनाता है, बृहस्पतिदेव उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैँ।
 
 भगवान बृहस्पतिदेव उसकी सदैव रक्षा करते हैं। संसार में जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक भगवानजी का पूजन, व्रत सच्चे हृदय से करते हैं, भगवान उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। जैसी सच्ची भावना से रानी और राजा ने उनकी कथा का गुणगान किया तो उनकी सभी इच्छाएं बृहस्पतिदेव जी ने पूर्ण की थीं।
 
 इसलिए पूरी कथा कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर ही जाना चाहिये। हृदय से उसका मनन करते हुये जैकारा बोलना चाहिये।
 
 बृहस्पतिदेव की जय, विष्णु भगवान की जय। 
 
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