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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


वायसराय की स्पेशल


कानपुर के छोटे से घर में चन्द्रशेखर आजाद के घर से बहुत दूर, आजाद, भगतसिंह और विजयकुमार रहते थे। एक दिन वहीं उन लोगों के अतिरिक्त राजगुरु, सुखदेव और अन्य कई साथी भी वहां आ पहुंचे। उसी दिन बंगाल से बटुकेश्वर दत्त भी आये। सबको मिलकर किसी विशेष कार्य के लिए सलाह करनी थी।

विजयकुमार बटुकेश्वर दत्त के आने की खुशी में दौड़कर दो डबल रोटी ले आये। जब सब लोग चाय पीने बैठे तो डवल रोटी के टुकडों को देखकर आजाद ने पूछा, ''यह डबल रोटी कहां से आईं? इसकी क्या जरूरत थी?''

''आज बटुकेश्वर भइया इतनी टूर से यहां आये हैं इसलिए चाय के साथ कुछ नाश्ता तो चाहिए ही।''

आजाद ने कड़ककर कहा, 'हम लोग जीवन की बाजी लगा कर मृत्यु से खेलने के लिए कार्य करते हैं। हमारा स्वागत खाने-पीने की चीजों से नहीं, गोलियों से होता है। हमारे पास स्वाद बनाने या स्वागत में खर्च करने के लिए पैसा कहां है? हमें तो एक-एक पैसा जोड़कर शस्त्र और कारतूस खरीदने होते हैं।''

विजयकुमार ने क्षमा मांगते हुए क्हा, ''पंडितजी, अब तो गलती हो ही गई है। आगे फिर कभी नहीं होगी। आज तो खा ही लीजिए।''

तब बड़ी मुश्किल से आजाद ने डबल रोटी का एक टुकड़ा खाया।

दो दिन वाद वायसराय लार्ड इरविन किसी काम से दिल्ली से बाहर जाने वाले थे। उसी विषय में यहां कुछ तय करना था। आजाद पहले से ही सारी योजना बना चुके थे। उन्होंने सबके सामने वह योजना रखी। सभी ने एक मत होकर उसे स्वीकार कर लिया।

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