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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


विश्वासघात


यद्यपि देश के सभी क्रान्तिकारी चुन-चुन कर पकड़े जा चुके थे। केवल चन्द्रशेखर आजाद ही आजाद थे। ब्रिटिश सरकार के बड़े से बड़े अंग्रेज अफसर पर उनका आतंक छाया हुआ था। उन्हें  स्वप्न में भी आजाद ही दिखाई पड़ते थे। उन्हें भय था, न जाने कब और कौन-सा अंग्रेज उनकी गोली का शिकार हो जाये? समस्त उत्तरी भारत की पुलिस पर विशेषकर उत्तर प्रदेश में, सरकार द्वारा सख्ती की जा रही थी, जैसे भी हो वैसे आजाद की आजादी समाप्त करो।

समस्त उत्तरी भारत में उस अकेले व्यक्ति के लिए सी० आई० डी० पुलिस का जाल-सा बिछा हुआ था किन्तु आजाद का कोई पता न था।

कुछ दिनों बाद सी० आई० डी० ने रिपोर्ट दी, 'कानपुर में तिवारी नाम का कोई व्यक्ति आजाद का बहुत विश्वासपात्र बन चुका है।'

पुलिस ने तिवारी का पता लगाया और उनकी गतिविधियों पर दृष्टि रखने लगी, फिर भी कुछ लाभ नहीं हुआ। धीरे-धीरे पुलिस के कुछ आदमियों ने तिवारी से मेल-जोल बढ़ाना आरम्भ कर दिया। क्योंकि उसके साथ किसी तरह की सख्ती करने से तो उन्हें आजाद की गोली का भय था।

एक दिन तिवारी को इलाहाबाद के चौक वाजार में देखा गया। पुलिस को कुछ संदेह हुआ। तिवारी से मिलने वाले पुलिस वालों ने तिवारी को, आजाद के गिरफ्तार कराने में सहायता देने के लिये प्रत्यक्ष रूप से तरह-तरह के प्रलोभन देने आरम्भ कर दिये किन्तु उसने नहीं माना।

अंग्रेज पुलिस सुपरिन्टेण्डेट नाटबायर ने शहर कोतवाल को बुलाकर डांट लगाई, ''वेल, टुम कैसा कोटवाल है? सी० आई० डी० का रिपोर्ट है, आजाद आजकल यहाँ है। टुम उसको पकड़ नहीं शकटा?''

शहर कोतवाल ने अपने सिटी इन्सपैक्टर से कहा, ''जैसे भी हो वैसे आजाद यहाँ से निकलने नहीं पाये, नहीं तो हम लोगों की खैर नहीं है।''

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