लोगों की राय

उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

80 पाठक हैं

ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


सारा का सारा मामला फर्जी था। यह था, एक गरीब से अपना प्रतिशोध लेने के लिए, समर्थों का जाल! अब मामले की अपील-पैरवी करने का वक्त बाकी न रहा था, और न भैरव के पास इतने रुपए ही थे कि अदालत में रुपए भर कर, इस जालसाजी के खिलाफ मामला आगे बढ़ाए। उसके सामने तो इस तरह झूठे जाल में फँसकर बरबादी के सिवा कुछ और न था।

बात साफ थी कि यह जाल गोविंद गांगुली और वेणी बाबू ने मिल कर बिछाया था! लेकिन किसी की हिम्मत न थी भैरव की बरबादी को देखते हुए भी, उनके विरुद्ध कुछ भी कह सके। रमेश ने साफ-साफ समझा कि इनके इस जाल के पीछे, एक दरिद्र ब्राह्मण की बरबादी में सबसे तगड़ा हाथ उनके पैसे का है, जिसके जोर पर आज सरकारी कानून का भी अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने में वे समर्थ हो सके। उनकी इस कुटिलता के लिए समाज में भी कोई विधान नहीं है। तभी अनेक अत्याचार करने पर भी वे देहाती समाज में सिरमौर बने बैठे हैं। ताई जी की बातें रह-रह कर उनके मस्तिष्क में टकराने लगीं, उन्हें उनकी उस दिन की बात याद आई, जब उन्होंने हँसते हुए कहा था कि बेटा, यह गाँववाले अंधकार के गर्त में पड़े हैं-बस, तुम एक बार जात-पाँत का, भले-बुरे का ध्यान न कर इनके मार्ग को प्रकाशित कर दो। इनको अँधेरे से निकाल कर उजाले में खड़ा कर दो, ताकि ये उजाले में अपना सही रास्ता पहचान सकें!! यह समझने में तब वे स्वयं ही समर्थ हो जाएँगे कि किसमें उनका हित है और किसमें अहित! और उन्होंने उनसे कहा था कि इस समय समाज को छोड़ कर कहीं भी न जाएँ! आज अपने यहाँ रहने की आवश्यकता को उन्होंने स्पष्ट ही महसूस किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book