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देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


रमेश ने एक ठण्डी आह भरते हुए मन-ही-मन कहा-'यही है हमारा बंगाली देहाती समाज, जिसकी न्यायप्रियता, सहिष्णुता और आपसी मेल-मुहब्बत पर हमें गर्व है! हो सकता है कि कभी इसमें भी सजीवता रही हो, जब यहाँ सहिष्णुता, सद्भाोवना और न्यायप्रियता रही हो। लेकिन आज तो वह कुछ निश्चसय ही नहीं है! लेकिन सबसे दुख की बात तो यह है कि बेचारे भोले-भाले ग्रामीण इस विकृत और मृतप्राय समाज से ही संतुष्ट हैं, इसके प्रति उनकी ममता छोड़े नहीं छूटती; और वे आँखें रहते हुए भी नहीं देख पा रहे कि इनकी यह मृग-संतुष्टि ही उनको पतन की ओर खींचे लिए जा रही है!'
थोड़ी देर तक तो रमेश अपने मनोभाव में ही खोया रहा। उससे जागने पर वे उठ कर खड़े हो गए, और गोपाल सरकार को भैरव के जाली कर्जेवाली सारी रकम के भुगतान के लिए एक चेक दिया और बोले-'आप सारी बातें समझ कर शहर जाइए! ये रुपए जमा कीजिए और अपील का भी जैसे बन पड़े इंतजाम करके आइए! इंतजाम ऐसा हो कि झूठे जाल बिछानेवालों को अच्छा सबक मिल जाए!' भैरव और गोपाल दोनों ही, रमेश के इस साहसिक काम से दंग रह गए। रमेश ने फिर गोपाल सरकार को सारी बातें विस्तार से समझा दीं, तो भैरव को विश्वा स हुआ कि रमेश मजाक नहीं कर रहा है, बल्कि उसने जो कुछ किया है, वह सत्य है! आत्म-विस्मृत भैरव ने रोते हुए रमेश के पैर पकड़ लिए और रो-रो कर आशीर्वाद की झड़ी लगा दी। रमेश को उन्होंने इस तरह पकड़ लिया कि अगर कोई दुबला-पतला कमजोर आदमी होता, तो अपने को छुड़ाने में उसे बड़ी मुश्किल पड़ जाती। बिजली की तरह यह बात सारे गाँव में फैल गई। सभी ने सोचा कि अब वेणी और गांगुली, दोनों की जान साँसत में पड़ जाएगी। सभी का खयाल था कि रमेश ने भैरव की मदद में जो इतने रुपए दिए हैं, सो इसलिए कि वेणी और गांगुली से वे अपनी शत्रुता का बदला लेना चाहते हैं। किसी ने स्वप्न में भी यह न सोचा कि रमेश ने भैरव की यह सहायता एक निर्धन के प्रति अपने कर्तव्य पालन के नाते की है!

इस घटना को बीते करीब एक महीना हो गया। मलेरिया के प्रतिरोध कार्य में उन्होंने अपने को इस बुरी तरह जुटा रखा था कि उन्हें यह याद ही न रहा कि कब भैरव के मुकदमे की तारीख है! आज शाम को रोशन चौकीदार की आवाज सुन कर उन्हें एकाएक तारीख की याद आई।

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