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देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


'कौन है। कहते हुए भैरव निकल आए। रमेश को इस अँधेरे में भी पहचानने में उन्हें देर न लगी। उनके हाथ-पैर सुन्न हो गए।
रमेश ने कर्कश स्वर में कहा-'इधर तशरीफ लाइए!' और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए, आगे लपक कर अपनी मजबूत मुट्ठी से उसके हाथ पकड़ लिए और तीव्र स्वर में पूछा- 'तुमने ऐसा क्यों किया?'

भैरव रोने लगा-'बाप रे बाप! मार डाला! दौड़ो रे दौड़ो! अरे, लक्ष्मी, जल्दी जा, वेणी बाबू से कह दे!'

घर भर के सारे बच्चे रोने-चीखने लगे और सारा मुहल्ला उनके रोने-बिलखने से गूँज उठा। रमेश ने उसे जोर से झटका देते हुए चुप रहने को कहा और डाँट कर फिर पूछा-बोलो, तुमने ऐसा क्यों किया?'

भैरव जोर-जोर से चीखते-चिल्लाते ही रहे। रमेश की बात का उत्तर न दिया और बराबर रमेश से अपने को छुड़ाने के लिए खींचातानी करते रहे। हल्ला-गुल्ला सुन कर अड़ोस-पड़ोस के औरत-मर्द आँगन में जमा हो गए और देखते-देखते वहाँ भीड़-सी लग गई। लेकिन आवेशोन्मत्त रमेश ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और बराबर भैरव को दबोचते ही रहे। भीड़ अवाक् हो, चुपचाप खड़ी देखती रही। रमेश की शक्ति के बारे में लोग वैसे ही भयभीत थे। अनेक कहानियाँ उनके दल के बारे में प्रचलित हो गई थीं। उनके इस समय के रुद्र रूप को देख कर, उनको रोकने का किसी में साहस न हुआ। गोविंद तो पहले ही भीड़ में छिप गए थे। वेणी भी यह तमाशा देख-छिपने के लिए इधर-उधर ताकने लगे। लेकिन भैरव की नजर उन पर पड़ गई और वह एकदम चिल्ला पड़े-'बड़े बाबू!' लेकिन उन्होंने उनकी एक व्यग्र पुकार की ओर ध्यान न दे, भीड़ में अपने को झट से छिपा लिया। तभी भीड़ में एक तरफ से खलबती-सी मची और दूसरे क्षण ही रमा रास्ता करते हुए रमेश के पास आ, उसका हाथ पकड़ कर बोली -'छोड़ दो अब! बहुत हो लिया!'

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