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उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास

15

वैसे तो रमेश को भी संदेह हो गया था कि भैरव ने उसके साथ धोखा किया है, और दूसरे दिन गोपाल सरकार ने शहर से लौट कर इस बात की पुष्टि भी कर दी कि भैरव ने अपने को अदालत में न हाजिर करके हमारे साथ दगा की है, और मुकदमा खारिज हो गया है। उसने जो कुछ रुपए जमा किए थे, वे सब वेणी के हाथ लगे। सुनते ही रमेश ऊपर से नीचे तक आग-बबूला हो उठा। रमेश ने भैरव को जाल से बचाने के लिए ही रुपए जमा किए थे, लेकिन उसने कृतघ्नता की हद कर दी! कल के अन्नप्राशन में निमंत्रित न किए जाने और आज की इस कृतघ्नता ने उनके समस्त तंतुओं को गुस्से से झनझना दिया। जिस अवस्था में वह बैठा था वैसे ही उठ कर बाहर जाने लगा। उसकी आँखों से रक्त बरस रहा था। गोपाल सरकार ने उनकी लाल आँखों को देख कर, डरते हुए धीरे से पूछा-'कहीं जा रहे हैं क्या आप?'

'कहीं नहीं, अभी आया!' और जल्दी से वे भैरव के घर की ओर चले गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा-चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है। वे घर में घुसे चले गए। उस समय भैरव की स्त्री तुलसी का दीपक जलाने के लिए खड़ी थी। रमेश को इस तरह अकस्मात आया देख कर, भैरव की स्त्री मारे डर के सिहर उठी। रमेश ने उससे पूछा-'कहाँ हैं आचार्य जी?' रमेश के शरीर पर एक कुर्ता भी नहीं था और अँधेरे में केवल उनका चेहरा ही स्पष्ट दिखाई दे रहा था। रमेश के प्रश्न  पर, भैरव की स्त्री ने अपने मुँह में ही बुदबुदा कर उत्तर दिया, जो स्पष्ट न होने के कारण रमेश को पूरा तो न सुन पड़ा, पर उसका निष्कर्ष उन्होंने यह निकाला कि भैरव घर पर नहीं है। तभी एक छोटे लड़के को गोद में लिए हुए भैरव की बड़ी लड़की लक्ष्मी बाहर निकली। अँधेरे में रमेश को न पहचान सकने के कारण उसने अपनी माँ से पूछा कि कौन हैं? माँ भी कुछ कह न सकी और रमेश भी मौन खड़ा रहा। लक्ष्मी दोनों में से किसी को बोलता न देख भयभीत हो चिल्ला पड़ी-'बाबू! देखो, यह न जाने कौन आँगन में खड़ा है? कुछ बोलता भी नहीं!'

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