उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
|
80 पाठक हैं |
ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
कर्ज लेकर न चुकाना तो उनके लिए साधारण-सी बात है! यही नहीं कि सभी ऐसे हैं! कुछ अच्छे लोग भली प्रकृति के भी हैं। पास-पड़ोस की सुंदर स्त्रियों और कुमारियों के बारे में बातें करना भी इनकी दिनचर्या में शामिल है। विधवा तो सभी घरों में प्राय: किसी-न-किसी अवस्था की है ही। पुरुषों के विवाह में दिक्कत पेश आने लगी है, तभी इनके समाज का नियमन काफी बड़ा है। कुछ भी हो, पर इनकी दुर्दशा देख कर किसी भी दिलवाले के लिए उधर से आँख फेरना मुश्किल है, जैसे बुराई में फँसे पुत्र की तरफ पिता की भावना होती है, वैसा ही रमेश की भावना भी इन लोगों के प्रति हो रही थी। पीरपुर की आज की पंचायत का उद्देश्य भी यही था।
शाम हो चली थी। चाँदनी बाहर के मैदानों पर अपनी शीतल चादर बिछा रही थी। रमेश तैयार हो कर खड़ा था वहीं जाने को, पर पैर नहीं बढ़े थे उधर अभी। कुछ सोच के वहीं खड़ा था कि रमा आ गई। उजाला न होने के कारण रमेश पहचान न सका, घर की नौकरानी समझ कर बोला-'क्या चाहिए?'
'बाहर जा रहे हैं क्या आप?'
रमेश चौंक कर बोला-'कौन, रमा? कैसे आईं इस समय?'
वह इस समय क्यों आई थी, यह बताना तो बेकार था, पर जिस काम से आई, उसके बारे में बहुत-सी बातें कहने को थीं। वह समझ नहीं पा रही थी कि बात कैसे शुरू हो। वह चुपचाप खड़ी रही, रमेश भी चुप रहा। थोड़ी देर बाद रमा बोली-'कैसी है अब आपकी तबीयत?'
'ठीक नहीं है! रात को रोज ही बुखार आता है।'
'तो फिर आपके लिए तो यही अच्छा है कि कहीं बाहर घूम आइए जा कर!'
|