उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
रमेश को सुनते देख आगे कहा-'भैया, जब मुझसे वेदना का भार न सहा गया, तो मैंने रो कर रमा से कहा कि हमने तुम्हारा ऐसा क्या बिगाड़ा था कि तुमने हमारा घर ही बिगाड़ डाला! रमेश की सजा की बात सुन कर, माँ रो-रो कर जान दे देंगी। हम भाई-भाई हैं, चाहे लड़ते-झगड़ते रहें, कुछ भी करते रहें, फिर भी दोनों भाई हैं; पर तुमने तो एक ही चोट में मेरे भाई को मारा और हमारी माँ को भी! भगवान हमारी भी सुनेंगे!' कह कर वेणी ने गाड़ी के बाहर से आसमान की तरफ देखा, मानो फिर भगवान के सामने कुछ विनती कर रहे हों। रमेश शांत बैठा रहा। थोड़ी देर बाद वेणी ने फिर कहा-'उस रमा ने तो वह चंडी रूप धारण किया कि रमेश, मैं तो आज भी उसकी याद से सिहर उठता हूँ। उसने दाँत किटकिटा कर कहा था-रमेश के बाबू जी ने भी तो मेरे बाप को जेल भिजवाना चाहा था, और बस चलता तो भिजवा कर ही रहते! मुझसे उसका घमण्ड देखा न गया और मैंने भी कह दिया कि रमेश को छूट कर आ जाने दो, तब देखा जाएगा! बस यही है मेरा दोष, भैया!'
रमेश को वेणी की बातें पूरी तरह समझ में नहीं आ रही थीं। उसे यह भी नहीं मालूम था कि कब उसके पिता ने रमा के पिता को सजा कराना चाहा था! उसे यह याद हो आया कि जब वह गाँव में आया ही आया था, तब भी रमा की मौसी ने ऐसी ही बात कह कर जली-कटी सुनाई थी। इसलिए बड़े ध्यान से सुनने लगा। वेणी ने भी उनकी उत्सुकतापूर्ण लगन देख कर कहा-'खून-खच्चर तो उसके बाएँ हाथ का काम है! तब तुमको मारने के लिए अकबर लठैत को भेजा था; जब तुमसे बस न चला तो फिर मुझे ही धर-दबाया, सो वह तुम्हारे सामने ही है!'
और उसके बाद कल्लू के लड़के के संबंध में, झूठी-सच्ची नमक-मिर्च मिला कर मनगढ़ंत बातें वेणी ने रमेश को सुना दीं।
'फिर क्या हुआ?'
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