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उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


रमेश पहले से जानता था विश्वेदश्वेरी को संसार से अधिक मोह नहीं रहा है। जेल से छूट कर आने पर, संसार से उनकी विरक्तता उसे आज अधिक जान पड़ी। आज जब उसने सुना कि वे काशीवास करने जा रही हैं और उनका विचार अब वहाँ से लौट कर आने का नहीं है, तब वह दंग रह गया। उसे इस संबंध में अब तक कुछ पता ही न था। जब वह पहले उनसे भेंट करने गया था, तब तो उन्होंने इस संबंध में कुछ कहा न था! बस, इन्हीं पाँच-छह दिनों से तो वह उनके पास नहीं जा पाया है!

रमेश को मालूम था कि उन्हें अपनी तरफ से किसी की आलोचना करने की आदत नहीं, और न उनका वैसा स्वभाव ही है। पर इस बात को सुन कर, उनके उस दिन के विरक्त व्यवहार की याद करके, उसकी आँखों के सामने सारी बातें साफ हो गईं। अब उनके जाने में उन्हें जरा भी संदेह न रहा और उनके प्रवास का विचार आते ही उसकी आँखें भर आईं और जरा भी देर न कर वह ताई जी के घर पहुँच गया। वहाँ पहुँचते ही दासी से पता चला कि वे रमा के घर गई हैं।

रमेश को विस्मय हुआ, पूछा-'इस समय?' दासी काफी पुरानी थी। मुस्कराते हुए उसने कहा-'आज तो यतींद्र का जनेऊ है न, और फिर उनके लिए समय-असमय की क्या बात है?'

रमेश ने और भी विस्मयान्वित हो कर पूछा-'यतींद्र का जनेऊ है? यह तो मालूम ही नहीं है किसी को!'

'उन्होंने किसी को निमंत्रण नहीं दिया और दिया भी होता तो भी कोई उनके यहाँ खाने न जाता! उन्हें जाति से अलग जो कर दिया है!'

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