उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद रमेश ने पूछा कि उसका दूसरा अनुरोध क्या है?
रमा बोली-'मेरा दूसरा अनुरोध है कि आप यतींद्र को अपने साथ रखें! मैं उसे आपको सौंप जाना चाहती हूँ-जैसे आप हैं, उसे भी वैसा ही बनाइएगा, ताकि बड़ा होने पर वह भी आपकी ही तरह त्यागी बन सके!'
रमेश का दिल पिघल गया। अपने आँसू पोंछते हुए रमा आगे बोली-'भले ही मुझे वह दिन देखने को न मिले, लेकिन मैं यह विश्वाबस के साथ जानती हूँ कि उसकी धमनियों में उसके पूर्व पुरुषों का जो रक्त है-उससे वह शिक्षा और आपका साथ पा कर, निश्चतय ही आपके समान विशाल हृदय का मनुष्य बन सकेगा!'
रमेश निरुत्तर रहा। बाहर आसमान पर स्वच्छ चाँदनी बिखरी थी, वह उसी तरफ खिड़की से देखता रहा। उसका मन प्रेम-व्यथा से भर उठा था। ऐसा तो पहले कभी उसने अनुभव न किया था! काफी देर तक चुप बैठे रहने के बाद वह बोले-'क्यों घसीटती हो मुझे इन सबमें? बड़ी मुश्किल के बाद तो एक सफलता प्राप्त कर सका हूँ। मुझे डर है कि इससे कहीं वह फिर नष्ट न हो जाए!'
'डर की अब गुंजाइश नहीं, रमेश भैया! आपके परिश्रम से जो सफलता आज मिली है, वह कभी नष्ट न होगी! एक दिन कहा था ताई जी ने आपसे कि ऊँचाई से आ कर, ऊँचे आसमान पर बैठ कर, देहाती समाज में घुलने-मिलने के बजाय उससे अपना अस्तित्व पृथक रख कर आपने काम शुरू किया था, उसी कारण इतनी बाधाएँ और विघ्न आपको उठाने पड़े! हम लोगों ने अपने बुरे कामों से आपको नीचे गिरा कर, उचित स्थान पर ला कर खड़ा कर दिया, जहाँ से आपके द्वारा जलाई गई लौ निरंतर प्रकाशवान ही होती जाएगी!'
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