उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
मुँह बिचका कर वेणी ने कहा-'तो फिर थाने ही चल कर बताओ न कि क्या है उसकी हस्ती! कहना कि हम बाँध कर खड़े पहरा दे रहे थे कि छोटे बाबू हम पर चढ़ आए और हमको उन्होंने मारा।'
अकबर ने जीभ दबा कर तोबा करते हुए कहा-'आप तो रात को, दिन बताने के लिए मुझसे कहते हैं, बड़े बाबू! यह भला कैसे हो सकता है?'
'तो फिर और कुछ कह देना! पर जा कर घाव तो दिखला आओ अपने! कल ही वारंट निकलवा कर थाने में बंद करवा दूँगा उसे। जरा तुम भी समझाओ न इसे रमा! ऐसा अच्छा मौका फिर कभी हाथ न लगेगा!'
रमा से एक शब्द भी न बोला गया। उसने सिर्फ एक बार अकबर की तरह देख भर लिया।
'यह न होगा मुझसे, मालकिन!'
वेणी बाबू ने डपट कर कहा-'क्यों नहीं होगा?'
अकबर ने भी तीव्र स्वर में कहा-'क्या कहते हैं यह बाप बड़े बाबू! क्या मुझे जरा भी हया-शर्म नहीं है! मुझे चार गाँव के लोग सरदार कहते हैं। मालकिन, आप चाहें तो मैं जेल जा सकता हूँ, लेकिन फरियाद नहीं कर सकता!'
अब रमा ने कोमल स्वर में उससे पूछा -'अकबर, क्या एक बार भी थाने नहीं जा सकोगे?'
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