उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
अकबर ने सिर हिलाते हुए, दृढ़ स्वर में कहा-'नहीं! किसी तरह भी शहर जा कर अपने बदन के घाव नहीं दिखा सकता। चलो गौहर, चलें! फरियादी न बन सकेंगे हम लोग!'
और वे लोग जाने को उद्यत हो गए! वेणी क्रोध से आँखें लाल-पीली कर, मन-ही-मन बुरी-बुरी गालियाँ बकने लगे और रमा की इस असमर्थता की चुप्पी से जल कर खाक हुए जा रहे थे। जब उसकी कोई तरकीब अकबर और उनके लड़कों को न रोक सकी, तब रमा के अंतरतम से एक ठण्डी आह निकल पड़ी और आँखों में अनायास की आँसू छलछला आए। इतनी बड़ी पराजय, अपमान और नाकामयाबी मिलने पर भी, मानो उसके हृदय-पुट से एक बहुत बड़ा भार हट गया। इसका कारण वह अंत तक न जान सकी। उसकी सारी रात जागते ही कटी। रह-रह कर उसकी आँखों के सामने वही दृश्य घूमने लगा, जब उसने अपने सामने बैठा कर रमेश को खाना खिलाया था। और जैसे-जैसे वह रमेश के कोमल स्वभाव, बल और क्षमता की कल्पना करती गई, त्यों-त्यों उसकी आँखों से और भी आँसू बहते गए।
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