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उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास

12

हालाँकि उस प्यार में कोई गंभीरता न थी-लड़कपन था, पर रमेश को रमा से अपने बचपन में अत्यंत गहरा प्रेम था, जिसकी गहराई का अनुभव सर्वप्रथम उन्होंने तारकेश्व र में किया था। पर उस शाम को रमेश अपने सारे लगाव तोड़कर रमा के घर से चला आया था, और तब से रमा के घर की दिशा भी उनको बालू की तरह नीरस और दहकती माया-सी जान पड़ने लगी। लेकिन उनकी आशा के विपरीत उनका सोना-जगना, खाना-पीना, उठना-बैठना, पढ़ना, काम-धंधा, सारा-का-सारा जीवन ही नीरस हो उठा था। तब उन्होंने अनुभव किया कि रमा ने उनके हृदय के कितने गहरे में स्थान बना लिया था। उसका मन अब गाँव से ही उचाट हो गया और वे गाँव छोड़ कर कहीं अन्यत्र जाने का विचार फिर करने लगे। लेकिन सहसा एक घटना हो गई, जिसने उनके उखड़े पैर फिर एक बार को जमा दिए।

ताल के उस पार, वीरपुर गाँव उसी परिवार की जमींदारी में है। अधिकांश आबादी मुसलमान किसानों की है। एक दिन वहाँ के कुछ लोग गुट बाँध कर, रमेश के पास अपनी एक अरज लेकर आए और बोले-'हम आपकी रिआया है, पर हमारे बच्चों को स्कूल में पढ़ने की इजाजत नहीं, सिर्फ इसलिए कि हम मुसलमान हैं! हमने कई बार अरज करके देख लिया, पर हमारी कोई नहीं सुनता। मास्टर भरती ही नहीं करते हमारे बच्चों को!'

रमेश को इस पर विस्मय भी हुआ और गुस्सा भी, बोले-'मेरे तो देखने-सुनने में भी कभी ऐसा अन्याय नहीं आया! मैं चलूँगा, तुम सबके साथ! आज ही अपने लड़कों को ला कर, मेरे सामने स्कूल में भरती करवा दो!'

किसानों ने कहा-'वैसे तो हम डरनेवाले नहीं! लगान देते हैं, तब खेत जोतते हैं-किसी के एहसान में नहीं रहते! फिर भी यह नहीं चाहते कि नाहक में बात बतंगड़ बने, इससे न हमारा ही फायदा होगा, न और किसी का। हमारी तो मंशा है कि एक स्कूल हमारा भी अलग खुल जाता, तो हम बेखौफ अपने बच्चों को वहाँ तालीम दिला सकते। उसमें हमें आपकी मदद की दरकार है। अगर आपकी मेहरबानी हो जाए तो…।

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