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देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


रमेश भी बेकार की लड़ाई-झगड़ा नहीं चाहते थे। वैसे ही वे इससे आजिज आ गए थे। अतः उनकी राय ही उन्होंने मान ली। जोर-शोर के साथ एक नए स्कूल की नींव पड़ने की तैयारी होने लगी। इन किसानों की संगति और साथ से, रमेश के नीरस जीवन में फिर ताजगी आ गई और उनका हौसला दूना हो गया। उन्हें अपनी शक्ति भी अब बढ़ती मालूम हुई। उन्होंने अनुभव किया कि ये लोग उनके गाँववालों की तरह, बात-बात के लिए झगड़ा नहीं करते। और अगर खुदा न खास्ता झगड़ा हो भी जाता है तो फिर दवा-दरपन अदालत-साखी तक की नौबत नहीं आती, और गाँव के चौधरी की अदालत में ही फैसला हो जाता है। इस गाँव के मुसलमान किसानों के आपसी संबंधों से रमेश को जो अनुभव हुआ, वह अपने गाँव के लोगों के अनुभव से विपरीत था। अगर एक पर कोई मुसीबत आ कर पड़ती, तो सारा गाँव, पास-पड़ोस एक हो, मिल कर उसका साथ देता था।

रमेश स्वयं भी जात-पाँत का भेदभाव नहीं मानता था; और जब इन्हें आस-पास के गाँव में ही जात-पाँत के भेद और अभेद की विषमता का अनुभव और जात-पाँत के प्रति उनकी घृणा और भी तीव्र हो उठी। उन्होंने समझा कि आपसी भेदभाव, धर्म-विभेद और जात-पाँत की छुआछूत के आधार पर पैदा हुआ द्वेष भाव हिंदुओं के पतन का मुख्य ही नहीं, बल्कि एकमात्र कारण है! और इसके विपरीत मुसलमानों में जात-पाँत, धर्म आदि का भेदभाव नहीं होता; अभी उनमें भाईचारा, एकता, आपकी सौहार्द हिंदुओं से कहीं अधिक पाया जाता है। अपने गाँव में आपसी भेदभाव को मिटाना असंभव है। इसी कारण जब तक उनके जात-पाँति के भेदभाव नहीं मिट सकते, तब तक आपस में भाईचारा, आपसी प्रेम और सौहार्द भी पैदा नहीं हो सकता। अतः इस ओर प्रयास करना भी अपनी शक्ति को व्यर्थ खर्च करना है! पिछले वर्षों के अनुभव से रमेश ने यही निष्कर्ष निकाला था और अपने इन वर्षों के व्यर्थ जाने का विचार कर उन्हें बड़ा पछतावा होने लगा था। वैसे उन्हें यह विश्वाास भी हो चला था, कि इस गाँव के लोगों के जीवन में तो इसी तरह आपसी ईर्ष्या-द्वेष की चक्की में पिसते हुए दिन बिताना लिखा है। इसी तरह इनके दिन कटते आए हैं, कटते जाएँगे। अतः अब अपनी शक्ति दूसरी ओर लगानी ही उचित है। पर ताई जी से इस संबंध में बात कर लेना जरूरी था, और काफी दिन से उनके दर्शन भी करने का अवसर नहीं मिला था-इसी बहाने दर्शन भी हो जाएँगे।

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