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उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


रमेश ने मुस्करा कर कहा-'बस यही बात है? तुम्हारे पास शिकायत आ ही गई न! अभी तो पिया नहीं है उनके हाथ का पानी, पर पीने में भी कोई एतराज नहीं है मुझे! मेरे नजदीक जात-पाँत के भेद-भाव कोई मानी नहीं रखते!!'

विश्वेनश्वेरी आश्च'र्यान्वित हो कर बोलीं-'नहीं मानते जात-पाँत, क्यों? क्या जाति का कोई अस्तित्व ही नहीं?'

'मानता हूँ, जाति का अस्तित्व है-आज के समाज में! पर यह भी मानता हूँ-पूरे विश्वाूस के साथ कि यह अच्छा नहीं है! और इस पर तुम्हारी राय पूछने आया हूँ।'

'क्यों?'

रमेश ने आवेश में कहा-'क्या यह भी तुम्हें बतलाना होगा ताई जी! क्या समाज में द्वेष-भाव, आपसी फूट, मन-मुटाव और तमाम लड़ाई-झगड़ों की जड़ केवल यह जाति भेद ही नहीं है? छोटी-बड़ी जाति और खानदान सारी ईर्ष्या की जड़ है! छोटी जाति के कहे जानेवालों के लिए यह नितांत स्वाभाविक है कि वे ऊँची जातिवालों से द्वेष रखें, उनसे बैर करें और अवसर की ताक में रहें उन्हें नीचा दिखाने के लिए। उनके दिल में नीचेपन से निकलने के विद्रोह की भावना हर समय काम करती रहती है। और यही कारण है कि हिंदू जाति दिन-पर-दिन पतन की ओर गिरती जा रही है। उसके माननेवाले, उसे छोड़ कर दूसरे धर्मों को अपनाते जा रहे हैं। अगर ताई जी, तुम्हें जनसंख्या के आँकड़े पढ़ने को मिलते, तो तुम्हारी आँखें खुल जातीं कि कितने हिंदू इसी विषमता के कारण दूसरे धर्मों में चले गए हैं। फिर भी हिंदू जाति के ठेकेदारों को होश नहीं आ रहा है!'

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