उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
'आपको ही?'
'मुझे? और छोटे भैया कह कर?' किसने बताया कि मुझे छोटे भैया कह कर पुकारा करो?'
'दीदी ने!'
'दीदी ने? क्या कुछ कहलाया है उन्होंने मेरे लिए?'
'वे मेरे साथ यहाँ आई हैं। वहाँ खड़ी हैं!' और उसने दरवाजे की तरफ इशारा कर दिया।
रमेश ने आश्चार्यान्वित हो कर देखा कि रमा एक खंभे की आड़ में खड़ी है। उसके पास पहुँच कर रमेश ने बड़े विनम्र और स्नेहसिक्त स्वर में कहा-'आओ, अंदर आओ! मेरे अहोभाग्य कि तुम मेरे यहाँ आईं। पर मुझे ही बुला लिया होता। तुमने नाहक तकलीफ की!'
रमा ने इधर-उधर देखा कि यतींद्र का हाथ पकड़ रमेश के पीछे-पीछे चल दी, और उसके कमरे की चौखट के पास आ कर बैठ गई। बोली-'मैं एक भीख माँगने आई हूँ आपके पास? कहिए, दीजिएगा?' और रमेश के चेहरे की तरफ एकटक देखने लगी। उस दृष्टि ने रमेश के सुप्त हृतस्वरों को झंकृत कर दिया, और दूसरे क्षण ही उनके समस्त तार झनझना कर एकबारगी टूट गए। थोड़ी देर पहले उनके मन में जो निश्चोय आया और मनोकामनाएँ हिलोरें मार रही थीं, वे प्राय: लुप्त-सी हो गईं। उन्होंने पूछा-'बोलो, तुम क्या चाहती हो?'
रमेश के स्वर में अन्यमनस्कता और उदासी थी। रमा ने भली प्रकार उसका अनुभव किया। बोली-'वायदा कीजिए कि देंगे!'
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