उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
रमा का चेहरा एकदम सुस्त हो गया, खड़े होते हुए उसने कहा-'तुम्हारे लिए तो कोई डर नहीं है न?'
'कहा नहीं जा सकता! मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि मामला क्या है और किस हद तक पहुँच गया है।'
रमा के होंठ काँप उठे। उसे याद हो आया कि उस दिन थाने में रिपोर्ट उसी ने कराई थी। याद आते ही वह रोने लगी और बोली-'मैं नहीं जाने की!'
रमेश चकित-सा थोड़ी देर को देखता रहा, फिर व्यग्र हो कर बोले-'नहीं रमा, तुम्हारा एक क्षण भी यहाँ ठहरना ठीक नहीं! फौरन चली जाओ!' और रमा को कहने का अवसर दिए बिना ही, यतींद्र का हाथ पकड़ कर, जबरदस्ती भाई -बहन को खिड़की के रास्ते बाहर कर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया।
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