लोगों की राय

उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

80 पाठक हैं

ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


मछलियों का जिक्र सुनते ही, यतींद्र वहाँ से सिर पर पैर रख कर भागा। रमा भी धोती से मुँह पोंछ कर, जिससे किसी को आवेग के चिह्न भी न मिल जाएँ उसके चेहरे पर, मौसी के साथ बाहर निकली।

आँगन में हंगामा मचा था। एक बड़ी-सी डलिया में पकड़ी हुई मछलियाँ रखी थीं और वेणी स्वयं ही आए थे...उसका बँटवारा करने को। पास-पड़ोस के बच्चे जमा हो कर शोर मचा रहे थे।

पीछे से खाँसते हुए धर्मदास आँगन में घुसे और घुसने के साथ बोले -'मछलियाँ पकड़ी गई हैं क्या आज, वेणी?'

वेणी ने मुँह बना कर कहा -'हाँ, पकड़ी तो गई हैं; पर थोड़ी-सी ही तो हैं!' और कहार को बुला कर उससे बोले-'जल्दी से दो हिस्सों में बाँट दे उन्हें, देख क्या रहा है खड़ा-खड़ा!'

कहार हिस्सा करने लगा। तभी गोविंद गांगुली ने भी आँगन में प्रवेश किया और बोले-'कहो बेटी रमा, कुशल से तो हो ना! कई दिनों से आना नहीं हो सका, सोचा, चलूँ जरा बेटी की कुशल ही पूछता आऊँ!'

रमा ने मुस्करा कर कहा-'आइए!'

गांगुली महाशय कहते हुए बढ़े-'आज इतनी भीड़ क्यों लगी है?' और आगे बढ़ कर, मछलियों का ढेर देख कर विस्मय प्रकट करते हुए बोले-'बड़ी मछलियाँ फँसी हैं आज जाल में। बड़े ताल में जाल पड़ा था क्या?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book