उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
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उस दिन से तीन महीने बाद, एक दिन रमेश सवेरे-सवेरे तारकेश्वोर के तालाब पर, जिसे दुग्ध सागर भी कहते हैं, गया था। वहीं पर सहसा एक स्त्री से उसकी भेंट हो गई, नितांत एकांत में। वह बेसुध हो उसकी ओर घूरता रहा। वह स्त्री स्नान करके गीली धोती पहने, सीढ़ी चढ़ कर ऊपर आ रही थी। पानी से भीगे उसके केश, पीठ पर मस्ती से पड़े अलसा रहे थे। उसकी उम्र बीस वर्ष की होगी। पानी के भार से, धोती शरीर से सट गई थी, यौवन उससे बाहर फूट रहा था। चौंक कर, पानी का कलश जमीन पर रख, तुरंत अपने दोनों से अपने यौवन-कलश छिपा, अपने ही में सिमटती-सकुचाती वह बोली -'यहाँ कैसे आए आप?'
रमेश दंग रह गया, यह देख कर कि वह इसे पहचानती है। चौंक कर एक तरह हट कर बोला-'क्या मुझे पहचानती हैं आप?'
'जी! पर आप आए कब यहाँ?'
'आया तो आज ही सवेरे हूँ। मामा के घर से और भी औरतें आनेवाली थीं; पर वे तो आई नहीं दीखतीं!'
'ठहरे कहाँ हैं यहाँ पर?'
'कहीं भी नहीं! यहाँ आने का यह मेरा पहला ही मौका है। अब तो आज की रात बिताने को कहीं स्थान तलाश करना ही होगा।'
'नौकर तो होगा साथ में?'
'नौकर तो नहीं है, अकेला हूँ।'
'हूँ!' और मुस्कराते हुए उसने अपनी आँखें ऊपर कीं, फिर चारों आँखें आपस में लड़ गईं। पर उसने तुरंत ही आँखें नीची कर लीं, और थोड़ी देर कुछ सोचती -सी रह कर बोली-'तो चलिए फिर, साथ!'
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