उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
और उसने अपना पानी का कलश उठा कर चलना शुरू कर दिया। रमेश अजीब असमंजस में पड़ गया। बोला-'अगर मेरे चलने से किसी प्रकार की हानि हो, तो आप इस तरह चलने को कहती भी नहीं, इसी विश्वाहस पर मैं चलता हूँ आपके साथ! याद तो मुझे भी आ रही है कि मैंने आपको कहीं देखा है। सूरत पहचानी-सी पड़ती है, पर यह नहीं याद आ रहा कि कहाँ और कब देखा है। कृपया अपना परिचय तो दे देतीं आप!'
'आप यहाँ प्रतीक्षा कीजिए थोड़ी देर, मैं पूजन कर अभी आई। फिर साथ चलते-चलते, रास्ते में परिचय भी दूँगी आपको!'
और वह मंदिर में चली गई। रमेश उसकी तरफ विमोहित दृष्टि से देखता रहा कि निश्चरय ही यह यौवन ही है, जो उसकी धोती में से छन-छन कर उसके अंतर को घायल कर रहा है। उसका अंग-अंग रमेश को पहचाना-सा लगने लगा, पर पूरी तरह से उसे अंत तक याद न कर सका। आधा घण्टे बाद पूजा समाप्त कर जब वह मंदिर से बाहर निकली तब फिर पहचान पाने के लिए उसने एक गहरी नजर उसके चेहरे पर डाली, पर फिर भी न पहचान सका।
रास्ते में चलते समय रमेश ने पूछा-'क्या आप यहाँ अकेली ही रहती हैं?'
'अकेली तो नहीं, एक दासी साथ है, जो घर पर ही काम कर रही होगी! वैसे तो यहाँ का सभी कुछ भली प्रकार मुझसे परिचित है, जब-तब यहाँ आया ही करती हूँ।'
'पर मैं यह तो अब तक न समझ पाया, कि आप मुझे क्यों ले रही हैं अपने साथ?'
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