उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
चन्द्रमुखी ने मीठी हंसी हंसकर कहा-'मां, मैं बड़ी दुखिया हूं, सब रुपया नहीं दे सकती। सुना है कि आप बड़ी दयावती हैं; इसी से आपके पास आयी हूं कि कुछ माफ कर दें।'
इस प्रकार की बात बड़ी बहू ने अपने जीवन में पहली ही बार सुनी। उनमें दया है मालगुजारी माफ कर सकती हैं, आदि कहने के कारण चन्द्रमुखी तत्काल ही उनकी प्रिय-पात्री हो गयी। बड़ी बहू ने कहा-'दिन-भर में कितने ही रुपये मुझे छोड़ने होते हैं, कितने ही लोग मुझे आकर पकडते हैं; मैं नाही नहीं कर सकती, इसलिए सभी मेरे ऊपर क्रोध भी करते हैं। तो तुम्हारा कितना रुपया बाकी पड़ता है?'
'अधिक नहीं, कुल दो रुपये; पर मेरे लिए यही दो रुपये पहाड़ हो रहे हैं; सारे दिन आज रास्ता चलकर यहां आयी हूं।'
बड़ी बहू ने कहा-'अहा! तुम दुखिया हो, तुम्हारे ऊपर मुझे दया करनी उचित है। ऐ बिन्दू! इनको बाहर लिये जाओ, दीवानजी से मेरा नाम लेकर कह देना कि दो रुपये माफ कर दें। अच्छा, तुम्हारा घर कहां है? '
चन्द्रमुखी ने कहा-'आपके ही राज्य में - अशयझूरी गांव में। अच्छा मां, क्या छोटे मालिक नहीं हैं?'
बड़ी बहू ने कहा-'अभागी! छोटा मालिक कौन है? दो दिन बाद सब मेरा ही तो होगा।'
चन्द्रमुखी ने उद्विग्न होकर पूछा-'क्यों? जान पड़ता है, छोटे बाबू पर खूब कर्ज है?'
बड़ी बहू ने थोड़ा हंसकर कहा-'मेरे यहां कई गांव बन्धक हैं। अब तक तो सब बिक गया होता। कलकत्ता में शराब और वेश्या के पीछे सारा धन लुटाये डाल रहे हैं, उसका कोई हिसाब नहीं, कोई अन्त नहीं।'
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