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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


भैरव-'जैसी तुम्हारी इच्छा हो। लेकिन कलकत्ता क्यों जाती हो मां, क्या कोई खास काम है?'

चन्द्रमुखी-'हां भैरव, खास काम है।'

भैरव-'और आओगी कब?'

चन्द्रमुखी-'यह नहीं कह सकती भैरव। अगर हो सका तो जल्दी ही आऊंगी और नहीं तो देर लगेगी। और अगर नहीं आ सकी तो घर-द्वार सब तुम्हारा ही होगा।'

पहले तो भैरव अवाक् हो गया, फिर उसकी दोनों आंखों में जल भर आया, कहा-'यह कैसी बात कहती हो मां! तुम्हारे न आने से इस गांव के लोग कैसे रह सकेंगे?'

चन्द्रमुखी के नेत्र भी सजल हो उठे, थोड़ी मीठी हंसी हंसकर कहा-'यह क्यों भैरव, मैं तो कुल दो ही वर्ष से आयी हूं, इसके पहले तुम लोग कैसे रहते थे?' इसका उत्तर मूर्ख भैरव नहीं दे सकता, किन्तु चन्द्रमुखी हृदय में सब-कुछ समझती थी। भैरव का लडका केवला उसके साथ जायेगा। गाड़ी पर आवश्यक चीज-वस्तु लादकर चलने के समय सभी स्त्री-पुरुष देखने आये, देखकर रोने लगे। चन्द्रमुखी भी अपनी आंखों के आंसू नहीं रोक सकी। नाश हो ऐसे कलकत्ता का, यदि देवदास न होते तो कलकत्ता में रानी का पद मिलने पर भी चन्द्रमुखी ऐसे प्रेम को तृणवत त्यागकर कभी न जा सकती।

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