उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
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दूसरे दिन वह क्षेत्रमणि के घर पर आ उपस्थित हुई। उसके पहले घर में इस समय दूसरे लोग रहते थे। क्षेत्रमणि अवाक् हो गया, पूछा-'बहिन, इतने दिनों तक कहां थी?'
चन्द्रमुखी ने सत्य बात को छिपाकर कहा-'इलाहाबाद थी।'
क्षेत्रमणि ने एक बार अच्छी तरह से सारा शरीर देखकर कहा-'तुम्हारे सब गहने क्या हुए बहिन?' चन्द्रमुखी ने हंसकर संक्षेप में उत्तर दिया-'सब हैं।'
उसी दिन मोदी से भेंट करके कहा-'दयाल, मेरे कितने रुपये चाहिए?'
दयाल बड़ी विपद में पड़ा, कहा-'यही कोई साठ-सत्तर रुपये चाहिए। आज नहीं, दो दिनों के बाद दूंगा।'
'तुम्हें कुछ न देना होगा, यदि मेरा एक काम कर दो।'
'कौन काम?'
'दो-तीन दिन के भीतर ही हम लोगों के मुहल्ले में एक किराये का घर ठीक कर दो-समझे?'
दयाल ने हंसकर कहा-'समझा।'
'अच्छा घर हो, अच्छे-अच्छे बिछौने-चादर चारपाई, लैम्प, दो कुरसियां, एक टेबिल हो-समझे?' दयाल ने सिर नीचा कर लिया।
'साड़ी, कुरती, श्रृंगारदान, अच्छे गिलट के गहने आदि कहां मिल सकते हैं?'
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