लोगों की राय

उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा

27

गाडी जब पंडुआ स्टेशन पर आकर खड़ी हुई, तब पौ फट चुकी थी। रात-भर खूब वर्षा हुई थी, अभी थोड़ी देर से थमी हुई है। देवदास उठ खड़े हुए। नीचे धर्मदास सोया हुआ था। धीरे से उसके सिर पर हाथ रखा, किन्तु लज्जावश जगा नहीं सके। फिर द्वार खोलकर धीरे से नीचे प्लेटफार्म पर उतर गये। गाड़ी सोये हुए धर्मदास को लेकर चली गयी। कांपते-कांपते देवदास स्टेशन के बाहर आये। एक गाड़ीवान को बुलाकर पूछा-'क्या हाथीपोता चल सकता है?'

उसने एक बार मुंह की ओर फिर एक बार इधर-उधर देखकर कहा-'नहीं बाबू, रास्ता अच्छा नहीं है। घोड़े की गाड़ी ऐसे कीचड़ पानी में उधर नहीं जा सकेगी।'

देवदास ने उद्विग्न होकर पूछा-'क्या पालकी मिल सकती है?'

गाड़ीवान ने कहा-'नहीं।'

देवदास इसी आशंका में धप् से बैठ गये कि क्या तब जाना नहीं होगा? उनके मुख से उनकी अन्तिम अवस्था के चिन्ह सुस्पष्ट प्रकट हो रहे थे। एक गधा भी उसे भलीभांति देख सकता था।

गाडीवान ने दयार्द्र होकर पूछा-'बाबूजी, एक बैलगाडी ठीक कर दें?'

देवदास ने पूछा-'कब पहुंचूंगा?'

गाड़ीवान ने कहा-'रास्ता अच्छा नहीं है, इससे शायद दो दिन लग जायेंगे।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book