उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
अब इतने दिनों बाद पार्वती का क्या हुआ, वह कैसी है, यह हम नहीं जानते; जानने की इच्छा भी नहीं होती। केवल देवदास के लिए हृदय बहुत क्षुब्ध रहता है।
आप लोगों में से भी जो कहानी को पढ़ेंगे, सम्भवत: मेरे ही समान क्षुब्ध होंगे। फिर भी यदि देवदास के समान हत्भाग्य, असंयमी और पापिष्ठ के साथ किसी का परिचय हो तो वह उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना करे, प्रार्थना करे कि और चाहे जो हो, पर उनकी जैसी मृत्यु किसी की न हो! मृत्यु होने में कोई हानि नहीं है, किन्तु उस समय एक स्नेहमयी हाथ का स्पर्श सिर पर अवश्य रहे, एक करुणार्द्र मुख को देखते-देखते इस जीवन का अन्त हो। जिससे मरने के समय किसी की आंखों का दो बूंद जल देखकर वह शान्ति से मर सके।
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