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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा


तीनों ने सिर हिलाकर कहा - 'हां, मिल गया। राधारानी तुम्हारा भला करें।' यह कहकर उन लोगों ने आंतरिक कामना की कि इस दानशील छोटी कन्या को कोई दंड-भोग न करना पड़े। पार्वती उस दिन जल्दी ही मकान लौटी। दूसरे दिन प्रातःकाल देवदास से उसकी भेंट हुई। उसके हाथ में एक परेता था, पर गुड्डी नहीं थी, वह खरीदनी होगी। पार्वती से कहा - 'पारो रुपया दो!'
पार्वती ने सिर झुकाकर कहा - 'रुपया नहीं है।'

'क्या हुआ?'

'वैष्णवी को दे दिया, उन लोगों ने गाना गया था।'

'सब दे दिया?'

'हां। सब तीन ही रुपये तो थे!'

'दुर पगली, क्या सब दे देना था?'

'वाह! वे लोग जो तीन जनीं थीं, तीन रुपये न देती तो तीनों का कैसे ठीक हिस्सा लगता?'

देवदास ने गंभीर होकर कहा - 'मै होता तो दो रुपये से ज्यादा न देता।' यह कहकर उसने परेता की मुठिया से मिट्टी के ऊपर चिन्हाटी खीचते-खीचते कहा - 'ऐसा होने से उनमें प्रत्येक को दस आना, तेरह गंडा एक कौड़ी का हिस्सा पड़ता।'

पार्वती ने इबारती तक सवाल सीखे हैं। पार्वती की इस बात से प्रसन्न होकर कहा - 'यह ठीक है।'

पार्वती ने देवदास का हाथ पकडकर कहा - 'मैंने सोचा था कि तुम मुझे मारोगे देव दादा!'

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